इस्लाम में समानता, कुरान हदीस में भेदभाव, इस्लाम में इंसानों की बराबरी



इस्लाम में समानता की अहमियत

आज के दौर में जहाँ नस्ल, जाति, लिंग और आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव बढ़ रहा है, इस्लाम मानवता को एकता और समानता का संदेश देता है। कुरान और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षाएँ स्पष्ट रूप से घोषित करती हैं कि "इस्लाम में केवल तक़वा (ईस्वर का डर, ईमान और अच्छे कर्म) की बुनियाद पर दर्जा मिलता है।" इस्लाम हर प्रकार के भेदभाव को समूल नष्ट करता है।
इस्लाम सभी इंसानों को बराबरी का दर्जा देता है। कुरान और हदीस इस बात की पुष्टि करते हैं कि जाति, रंग, भाषा या क्षेत्र के आधार पर किसी भी व्यक्ति में कोई ऊंच-नीच नहीं है।

कुरान में समानता का संदेश

इंसानियत की एकता

अल्लाह कुरान में फरमाता है:
"ऐ लोगो! हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हें विभिन्न जातियों और कबीलों में बाँटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। निस्संदेह, अल्लाह के नज़दीक तुममें सबसे इज़्ज़तवाला वह है जो सबसे ज़्यादा परहेज़गार हो। निस्संदेह, अल्लाह जाननेवाला, ख़बररखनेवाला है।" (सूरह अल-हुजुरात 49:13)

यह आयत साबित करती है कि अल्लाह के लिए इंसान की पहचान उसके कर्म और ईमान से है, न कि उसकी जाति या हैसियत से।

• न्याय में समानता

"ऐ ईमानवालो! अल्लाह के लिए न्याय के साथ खड़े रहो और किसी जाति की दुश्मनी तुम्हें इतना न बहका दे कि तुम न्याय न करो। न्याय करो, वह तक़वा के ज़्यादा करीब है अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर हैं।" (सूरह अल-माइदा- 5:8)

इस आयत में अल्लाह न्याय और निष्पक्षता पर ज़ोर देता है, चाहे सामनेवाला दोस्त हो या दुश्मन।

पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) का जीवन – समानता की मिसाल

नस्लीय भेदभाव का खंडन

पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:

"ऐ लोगों! तुम्हारा रब एक है और तुम्हारा बाप (यानी आदम अलैहिस्सलाम) भी एक है। बेशक कोई अरब किसी गैर अरब से बड़ा नहीं और ना कोई गैर अरब किसी अरब से बड़ा है और ना कोई गोरा किसी काले से बेहतर है और ना कोई काला किसी गोरे से बेहतर है; सिवाय तक़वे के (यानी खुदा से डरने वाला ही अल्लाह की नजर में मर्तबे में बड़ा और बेहतर है)।
[ किताब - मुसनद अहमद - 22978]


पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) ने फरमाया :
"बेशक अल्लाह तआला तुम्हारी सूरतों और तुम्हारे मालों (धन) को नहीं देखता, बल्कि वो तुम्हारे आमाल (कर्मों) और दिलों को देखता है"
[किताब   इब्ने माजा; हदीस - 4143]

यह हदीस नस्ल और रंग के आधार पर किसी भी प्रकार की श्रेष्ठता को खारिज करती है।

बिलाल (र.अ.) का उदाहरण – गुलामी से इज़्ज़त तक
हज़रत बिलाल बिन रबाह (र.अ.), जो की अफ्रीका देस का एक अश्वेत (काले) गुलाम थे, इस्लाम लाने के बाद पैगंबर (सल्ल.) के करीबी सहाबी बने। उन्हें मस्जिद में अज़ान देने का सम्मान मिला, जो इस्लाम में समानता का प्रतीक है। इस्लाम धर्म को अपने के बाद उसकी जिंदगी बदल गई उसे एक मुस्लमान ने खरीद कर आजाद कर दिया उसे बहुत इज्जत दी गई , उसे बहुत सम्मान मिला उसे मोअजिन (अजान देने वाला) बनाया गया वो नमाज के लिए आजान देता था और वो काबा जो की सबसे पविर्त जगह है वहा की छत पर चड़ कर आजान दिया था बेलाल ने और उससे कोई भेद-भाव नही किया जाता वो सब मुस्लमानो के साथ मिलकर नमाज पड़ता, खाना खाता, पिता , उठता ,बेठता , सोता जागता ।  

जाति, नस्ल, और लिंग के आधार पर भेदभाव का खंडन

अमीर गरीब भेदभाव का खंडन

जब मुस्लमान नमाज के लिए खड़े होते होते हैं तो अमीर, गरीब काला गोरा, राजा हो या महराजा हो या फिर आम आदमी सब एक साथ एक ही लाईने मे खड़े होते है।

नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : अल्लाह ने मुझे उपदेश भेजा है कि आपस में झुककर रहो। और कोई किसी पर गर्व न करे। और न कोई किसी पर अत्याचार करे,,
(सह़ीह़ मुस्लिम - 2865d) 

• जाति व्यवस्था का अंत

इस्लाम से पहले अरब समाज में जाति के आधार पर ऊँच-नीच थी। पैगंबर (सल्ल.) ने कहा:

,,,लोग आदम की संतान हैं, और आदम मिट्टी से बनाए गए थे,,,,, (सहीह अबू दाऊद 5116),(तिर्मिज़ी 3270)
इससे साफ़ है कि इस्लाम में जन्म के आधार पर कोई विशेषाधिकार नहीं।

• महिलाओं के अधिकार

कुरान ने महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा (सूरह अन-निसा 4:7), शिक्षा का अधिकार, और सम्मान दिया।

"आखरी पैग़म्बर मुहम्मद (स•) ने फरमाया कि, तुम मे से सबसे अच्छा वो सख्स है जो अपनी बीबी के साथ अच्छा सुलुक/व्यव्हार  करता है।"
[किताब - जामी तिर्मिजी - 1162 ]

इस्लामी इतिहास में समानता के सबूत

• अलग अलग सहाबा

पैगंबर मोहम्मद (सल्ल.) के साथियों में अरब, गैर-अरब, गोरे, काले, अमीर, गरीब सभी शामिल थे। सुहैब रूमी (र.अ.) जैसे गैर-अरब और सलमान फारसी (र.अ.) जैसे विदेशी सहाबा ने इस्लाम को गले लगाया।

• पहला शहीद एक औरत

सुमैया (र.अ.), एक गरीब महिला, इस्लाम कबूल करने वाली पहली शहीद बनीं। उनका सम्मान इस्लाम में महिलाओं की गरिमा को दर्शाता है।

 • कुरान की घोषणा: सूरह अल-अहज़ाब (33:35)

"मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिलाएँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाले महिलाएँ.......................
अल्लाह ने इन सभी के लिए माफ़ी और बड़ा इनाम तैयार किया है।"(33:35)
इस आयत में महिलाओं को पुरुषों के समान आध्यात्मिक और सामाजिक अधिकार दिए गए हैं। आधुनिक युग में महिलाओं की शिक्षा, रोज़गार, और नेतृत्व को इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर बढ़ावा दिया जा सकता है।

• एक दूसरे के लिये प्यार

पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: 
"कोई भी व्यक्ति तब तक पूरा मोमिन (ईमानवाला) नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही पसंद न करे जो वह अपने लिए पसंद करता है।" (सहीह बुखारी 13)

हदीस से सीख
- यह हदीस बताती है कि सच्चा ईमान सिर्फ़ इबादत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें दूसरों के प्रति अच्छाई और परोपकार की भावना भी शामिल है। 
-मुसलमानों के बीच प्यार और भाईचारे को मज़बूत करने का संदेश। 
- दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना जैसा आप अपने लिए चाहते हैं। 

• नस्लीय भेदभाव के खिलाफ आवाज़

मल्कॉम एक्स और मुहम्मद अली जैसे मुस्लिम नेताओं ने अमेरिका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया, जो इस्लामी शिक्षाओं से प्रेरित था।

• लैंगिक समानता की मिसाल

मुस्लिम देशों में महिला शिक्षा और नेतृत्व को बढ़ावा देने वाली हीरा इब्राहिम (सोमालिया की पूर्व राष्ट्रपति) जैसे उदाहरण इस्लामी सिद्धांतों को ज़िंदा करते हैं।

• समानता का सबसे बड़ा उदाहरण – हज और नमाज़

हर साल हज में, लाखों मुसलमान एक समान सफ़ेद कपड़ों में बिना किसी भेदभाव के एक साथ इबादत करते हैं। इसी तरह, मस्जिद में अमीर-गरीब, राजा-रंक एक ही सफ में नमाज़ अदा करते हैं।

निष्कर्ष

इस्लाम भेदभाव से मुक्ति का मार्ग है, इस्लाम ने 1400 साल पहले ही वो सिद्धांत दिए कुरान और हदीस की शिक्षाएँ साबित करती हैं कि "इंसान की पहचान उसके कर्म से है, न कि उसकी जाति, रंग, या लिंग से"। आज के दौर में जहाँ भेदभाव बढ़ रहा है, इस्लाम ही वह रास्ता है जो समानता और इंसानियत को बचा सकता है।





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