इस्लाम में चेहरे पर मारने की मनाही – पैगंबर मुहम्मद (सल्ल•) की शिक्षाएं और वैज्ञानिक तर्क



इस्लाम केवल इबादत और धार्मिक उपदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसान के नैतिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के हर पहलू को शामिल करता है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हर प्रकार के अन्याय और अनैतिक व्यवहार को रोका और इंसानियत को अपनाने की शिक्षा दी।

इनमें से एक स्पष्ट आदेश यह है कि किसी के चेहरे पर मारना हराम (निषिद्ध) है।

आज जब न्यूरोसाइंस और मेडिकल साइंस इस विषय पर रिसर्च कर रही है, तो यह पता चलता है कि इस्लाम के यह आदेश न केवल नैतिक रूप से बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी पूरी तरह सही हैं।

 चेहरे पर मारने की मनाही

"जाबिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) बताते हैं कि अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्ल•) ने मना किया चेहरे पर मारना और चेहरे पर दागना।"
(सही मुस्लिम 2116)

~ इस हदीस से यह स्पष्ट है कि चेहरे पर मारना न केवल बच्चों के लिए, बल्कि सभी इंसानों और जानवरों के लिए भी निषिद्ध है।


इसी तरह एक और हदीस में आता है:

"पैगंबर मुहम्मद (सल्ल•) ने कहा कि जब तुम किसी को सज़ा दो, तो उसके चेहरे पर मत मारो।"
(सही बुखारी 2559, सही मुस्लिम 2612)

~इस्लाम में न केवल चेहरे पर मारना बल्कि किसी भी इंसान या जानवर के साथ हिंसक व्यवहार करना हराम माना गया है।


○ चेहरे पर मारना क्यों मना किया गया? (इस्लामी दृष्टिकोण)

इस्लाम में हर इंसान को इज्जत और सम्मान देने की शिक्षा दी गई है। चेहरा व्यक्ति की पहचान और उसकी सुंदरता का केंद्र होता है। उलेमा (इस्लामिक विद्वान) बताते हैं कि चेहरे पर मारने की मनाही के कई कारण हैं:

• चेहरा नाजुक होता है और चोट से कुरूपता आ सकती है।
• आंख, नाक, कान और मुँह पर चोट से गंभीर बीमारी या विकलांगता हो सकती है।
• चेहरे पर चोट से आत्म-सम्मान (Self-Esteem) को नुकसान पहुँचता है।
• इस्लाम किसी भी प्रकार के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न को रोकता है।


○विज्ञान इस्लाम के इस आदेश की पुष्टि कैसे करता है?

वर्तमान मेडिकल साइंस ने यह साबित कर दिया है कि चेहरे में एक "सातवीं नस" (Seventh Facial Nerve) होती है,अगर इस पर चोट लगती है, तो इसके गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं:

• चेहरे का पैरालिसिस (लकवा) हो सकता है।
• चबाने और निगलने में दिक्कत हो सकती है।
• आंखों की रोशनी और आंसू ग्रंथियों पर असर पड़ सकता है।
• स्वाद और गंध पहचानने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

क्या 1400 साल पहले कोई जानता था कि चेहरे पर मारने से यह सब हो सकता है? बिल्कुल नहीं! लेकिन हमारे नबी (सल्ल•) ने पहले ही इसकी मनाही कर दी थी।


○ बच्चों के चेहरे पर मारने से मानसिक असर

आज की Child Psychology (बाल मनोविज्ञान) के अनुसार, अगर बच्चों के चेहरे पर बार-बार मारा जाए, तो उनके दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ता है:

• आत्मविश्वास (Confidence) कम हो जाता है।
• बच्चे डरपोक और मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।
• भावनात्मक विकास (Emotional Development) प्रभावित होता है।
• बच्चों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन और अवसाद (Depression) बढ़ सकता है।

>>> यही वजह है कि इस्लाम ने बच्चों के साथ नरमी और दया का व्यवहार करने पर जोर दिया है।

हदीस:
"जो छोटों पर दया नहीं करता और बड़ों का सम्मान नहीं करता, वह हम में से नहीं है।"
(सुनन तिर्मिज़ी 1919, सही हदीस)


○ गुस्से को कैसे कंट्रोल करें?

इस्लाम हमें गुस्से पर काबू पाने के लिए कुछ उपाय बताता है:

• जब गुस्सा आए, तो अल्लाह से इस्तिग़फ़ार (माफी) माँगें।
 • अगर खड़े हैं, तो बैठ जाएं। अगर बैठे हैं, तो लेट जाएं।
• "अऊज़ु बिल्लाहि मिनश-शैतानिर-रजीम" पढ़ें।
• गुस्सा शांत करने के लिए वुज़ू करें।


हदीस:
"गुस्सा शैतान से आता है, और शैतान आग से बना है। इसलिए जब तुम्हें गुस्सा आए, तो वुज़ू करो, क्योंकि पानी आग को बुझा देता है।"
(अबू दाऊद 4784, हसन हदीस)


>>>> पैगंबर मुहम्मद (सल्ल•) की शिक्षा हमें बताती है कि चेहरे पर मारना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य और समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।


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