एक मुस्लिम लड़के की दिल छू लेने वाली कहानी "अल्लाह की मोहब्बत"


कहानी की शुरुआत 

इस कहानी में हम आपको एक मुस्लिम लड़के, आरिफ़ की ज़िंदगी के संघर्ष और उसकी अल्लाह से बढ़ती मोहब्बत के बारे में बताएँगे। यह कहानी न सिर्फ़ दिल को छू लेगी, बल्कि आपको इस्लाम की गहराइयों तक ले जाएगी। आरिफ़ की ज़िंदगी में आए उतार-चढ़ाव और उसकी आस्था की ताक़त हमें सिखाती है कि "अल्लाह ही सबसे बड़ा हमदर्द है।"

 आरिफ़ का बचपन

आरिफ़ गाँव के एक साधारण मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ। उसके पिता मज़दूरी करते थे, और माँ घर संभालती थी। बचपन से ही आरिफ़ नमाज़ और क़ुरान की तिलावत को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाता था। लेकिन जब वह 12 साल का हुआ, तो उसके पिता की मृत्यु ने उसकी दुनिया बदल दी। ग़म के इस दौर में आरिफ़ ने सब्र का सहारा लिया और अल्लाह पर भरोसा किया।

 ज़िंदगी की कठिनाइयाँ

पिता के जाने के बाद आरिफ़ पर परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई। वह स्कूल छोड़कर मज़दूरी करने लगा। लेकिन उसकी माँ ने उसे समझाया: "बेटा, अल्लाह हमारा रिज़्क़ देने वाला है। तू पढ़ाई जारी रख।" आरिफ़ ने दिन में काम किया और रात को पढ़ाई की। इस दौरान उसने महसूस किया कि अल्लाह की मदद के बिना कुछ भी मुमकिन नहीं।

गाँव के लोग आरिफ़ के परिवार को कमज़ोर समझने लगे। कुछ लोगों ने उन्हें कर्ज़ दिया, लेकिन ब्याज की शर्तें रखीं। आरिफ़ ने इनकार कर दिया और कहा: "इस्लाम में सूद हराम है। मैं अल्लाह पर भरोसा करता हूँ।" यह फ़ैसला उसकी ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट बना।

अल्लाह पर भरोसा

एक दिन आरिफ़ मस्जिद में नमाज़ के बाद इमाम साहब से मिला। इमाम साहब ने उसे क़ुरान की इस आयत का मतलब समझाया: "और उसे जीविका प्रदान करेगा, उस स्थान से, जिसका उसे अनुमान (भी) न हो तथा जो अल्लाह पर निर्भर रहेगा, तो वही उसे पर्याप्त है। निश्चय अल्लाह अपना कार्य पूरा करके रहेगा।" (क़ुरान 65:3)। 
यह आयत आरिफ़ के दिल में उतर गई। उसने ठान लिया कि वह हर हाल में अल्लाह के भरोसे रहेगा।

 दुआओं का असर और उम्मीद

आरिफ़ ने रोज़ सुबह तहज्जुद की नमाज़ पढ़ना शुरू की। एक रात उसने दुआ की: "या अल्लाह, मेरी मदद कर, मैं तेरे सिवा किसी का नहीं।" कुछ हफ़्तों बाद, गाँव के एक सेठ ने बिना ब्याज के उसे कर्ज़ दिया। आरिफ़ ने छोटी दुकान खोली और धीरे-धीरे उसने अपने परिवार की हालत सुधार ली।

सालों की मेहनत के बाद आरिफ़ ने अपनी दुकान को बड़ा बिज़नेस बना लिया। उसने अपनी पहली कमाई से हज की यात्रा की। मक्का पहुँचते ही उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े। उसने कहा: "शुक्र है अल्लाह का, जिसने मुझे यहाँ तक पहुँचाया।"

 दूसरों की मदद 

आरिफ़ ने गाँव में मदरसा और बीमारों के लिए क्लिनिक बनवाया। उसका मानना था कि "सबसे अच्छा इंसान वह है जो दूसरों के काम आए" उसकी इस सेवा ने लोगों के दिलों में इस्लाम के प्रति प्यार जगाया।

 कहानी से सीख

आरिफ़ की कहानी हमें सिखाती है कि अल्लाह पर भरोसा और सब्र हर मुसीबत का हल है। चाहे ज़िंदगी कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, अल्लाह की मोहब्बत और इस्लाम की शिक्षाएँ हमें रास्ता दिखाती हैं।

अगर आप भी ज़िंदगी के संघर्षों से जूझ रहे हैं, तो अल्लाह से दुआ करें और क़ुरान की शिक्षाओं को अपनाएँ। याद रखें: "ऐ ईमानदारों मुसीबत के वक्त सब्र और नमाज़ के ज़रिए से ख़ुदा की मदद माँगों बेशक ख़ुदा सब्र करने वालों ही का साथी है"  (क़ुरान 2:153)।

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