अल्लाह के रसूल ﷺ  (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) जब किसी जनाज़े की नमाज़ पढ़ते तो ये दुआ पढते :


"अल्लाहुम्मग़ फ़िर लि हय्यिना व मय्यितिना व शाहिदिना व ग़ाइबिना व सग़ीरिना व कबीरिना व ज़करिना व उन्साना |

अल्लाहुम्म मन अहययतहू मिन्ना फ़ अहयिही अलल इस्लाम व मन तवफ़्फ़ैतहू मिन्ना फ़ तवफ़्फ़हू अलल ईमान |

अल्लाहुम्माला तहरीमना अजरहु व ला तुजिल्लाना ब'अदह


अरबी में,

اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِحَيِّنَا وَمَيِّتِنَا وَشَاهِدِنَا وَغَائِبِنَا وَصَغِيرِنَا وَكَبِيرِنَا وَذَكَرِنَا وَأُنْثَانَا اللَّهُمَّ مَنْ أَحْيَيْتَهُ مِنَّا فَأَحْيِهِ عَلَى الإِسْلاَمِ وَمَنْ تَوَفَّيْتَهُ مِنَّا فَتَوَفَّهُ عَلَى الإِيمَانِ اللَّهُمَّ لاَ تَحْرِمْنَا أَجْرَهُ وَلاَ تُضِلَّنَا بَعْدَهُ ‏"

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Reference : Sunan Ibn Majah 1498